श्री विश्वमोहन तिवारी |
आदरणीय विश्वमोहन तिवारीजी,
आप इस देश की की संस्कृति की गौरव गाथा के जरिए देशवासियों को यह बताने की अथक-निर्बाध और सार्थक कोशिश कर रहे हैं कि हम क्या थे और क्या हो गए हैं। प्रवासी हिद्वानों ने भारतवर्ष, के लिए जो कहा है उसे पढ़कर गौरवानुभूति होती है। स्वाभिमान से माथा ऊंचा हो जाता है। आप हम सब पर बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं। मेरे अभिवादन स्वीकारें।
पंडित सुरेश नीरव
भारत की आवश्यकता पूरी पृथ्वी को है, और भारत को किसी की आवश्यकता नहीं। .. हमने प्रदर्शित कर दिया है कि भारत से साहस और क्रूरता में कितने आगे हैं, और विवेक में हम उनसे कितने पीछे हैं। हम यूरोपी देशों ने इस ज़मीन पर एक दूसरे को नष्ट कर दिया है, जहां हम केवल धन की खोज में गए, जब कि ग्रीक इसी देश को गए मात्र अपने को शिक्षित करने । . . . . .
स्रोत : फ़्रगमां हिस्तोरीक सुर लेन्द – वोल्तेयर
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