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Sunday, January 15, 2012



दो दिन पहले अचानक श्री भगवान सिंह हंस का फ़ोन आ गया।
मुझे प्रसन्नता हुई कि ब्लाग का प्रेम छलककर बाहर बिखरा।
मुझे उन्के विषय में इतनी‌ ही जानकारी थी कि वे भरत चरित्र के रचयिता है जो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भरत के चरित्र को अपने भक्ति भाव में अभिव्यक्त कर् रहे हैं।
और जब पता लगा कि वे एक गरीब तथा अमपढ़ घर की उपज हैं तब सुखद आश्चर्य हुआ क्योकि प्रतिभा पर न तो अमीरी और न पढ़ाइ लिखाई का कब्जा है। यह तो ठीक है कि वे पढ़ने लिखने में इतने कुशल तथा निपुण थे कि शिक्षक स्वयं ही उऩ्हें 'लगातार डबल प्रोमोशन' दे रहे थे, और उऩ्होंने ११ वर्ष की सच्ची आयु में विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त कर ली, और तत्पश्चात नौकरी करते हुए हिन्दी में स्नातकोत्तर भी कर लिया।

वे राम भक्त तो हैं‌ ही ,और उनके परिवार में‌भी यह प्रेम आ गया, किन्तु एक दिन उनके पुत्र ने कहा कि उसे भरत का चरित्र बहुत ही प्रिय है और उनसे अनुरोध किया कि वे भरत पर एक काव्य रचना करें और तब भरत चरित्र का जन्म हुआ।
ष्री‌हंस जी को बधाई और नमन

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