प्रसिद्ध फिल्मकार सतीश कौशिक के साथ पंडित सुरेश नीरव साथ में हैं शेखर कपूर |
---मेरे हिसाब से विचार और विचारधारा दो अलग-अलग चीजें हैं। विचार सतत है,निरंतर है,प्रवहमान है जबकि विचारधारा एक निश्चित परिधि में सीमित,स्थिर और लगभग अपरिवर्तनशील तर्कों और निष्कर्षों का संचयन है।विचार बहती धारा है और विचारधारा वाद के गड्ढे में रुका पानी है। और जो रुक गया वह जीवंत नहीं हो सकता। हमारी प्रतिबद्धता विचार से हो या विचारधारा से इस प्रश्न के उत्तर में मैं यही कहना चाहूंगा कि प्रतिबद्धता भी एक तरह का जुड़ाव है,बंधन है,खूंटा है। फिर भी प्रतिबद्धता जरूरी है। मगर प्रतिबद्धता किसके साथ। यह प्रतिबद्धता होनी चाहिए विचार के साथ,मूल्यों के साथ। सृजन के लिए यही जरूरी है। मूल्यगत प्रतिबद्धता एक व्यापक अनुभव संसार को सृजन में उतारती है। साहित्य को एकद्रष्टि देती है जबकि विचारधारा से प्रतिबद्धता एक विशेष दृष्टि से साहित्य को देखती है। सृष्टि से दृष्टि का विकास हो यह तो ठीक है मगरसृष्टि को देखने का पूर्वग्रह एक किस्म का बौद्धिक दीवालियापन है। मानसिक विकृति है। और अपने अनुभव संसार को बौना करने का भावुक हठ है। इसके अलावा और कुछ नहीं।
पंडित सुरेश नीरव
अरविंद पथिक द्वारा लिए साक्षात्कार से
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