Search This Blog

Thursday, January 5, 2012

दो शब्द विदाई पर

एक सितारा टूटा नभ से जाने कहाँ गया
वह गीतों का हरकारा जाने कहाँ गया

हिंदी गीत के पुरोधा , अद्वितीय गीतकार श्री भारत भूषण यों तो १७ दिसम्बर, २०११ सांय चार बजे इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, पर वास्तविकता तो इससे परे हैमैं समझता हूँ जब तक हिंदी गीत विधा जीवित रहेगी तब तक मोजूद रहेंगे हम सबके बीच भाई भारत भूषण
पिछले लगभग चार साल से मैं लगातार अपना पाक्षिक पत्र "दी गौडसन्स टाइम्स " उन्हें भेजता रहा हूँजब कभी उनका हाल जानने के लिए फोन करता तो बड़े उत्साह से उत्तर देते, "मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब तो और अच्छा महसूस कर रहा हूँ "फिर ढेर सारी बातें पत्र में छपी हुई कविताओं पर होती और फिर मेरे सम्पादकीय क़ी प्रशंसा की जातीफिर मैं भी दूसरे साहित्यकारों की तरह ही अपनी रचना की बढाई सुनकर मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, उन्हें धन्यवाद देता और बातचीत का दी एंड हो जाता
लगभग तीन वर्ष पहले उनका एकल कविता पाठ दिल्ली हिंदी भवन में होना थाउससे पहले मैंने उन्हें नहीं देखा थादेखा आगे से उठकर पीछे क़ी और एक कृषकाय शरीर आधे बाजू की कमीज और पेंट पहने चश्मा लगाय रहा हैमुझे तो साथ बैठे मित्र ने बताया क़ी यही भारत भूषण जी हैमैं बड़ी तेजी से उनके समीप पहुंचा , प्रणाम करने पर उन्होंने मुझसे पूछा " आप कोन है, माफ़ करना मैं पहचान नहीं पाया" जब मैंने परिचय दिया तो वह मुझसे लिपट गए और गदगद स्वर में बोले " भई लिखने में तो कमाल करते हो, तुमाहरे सम्पादकीय बड़ी मीठी मार मारते है। "
इस मुलाकात के बाद ओपचारिक जान पहचान ने एक मित्रता का रूप ले लियामेरे लगातार किये गए वायदे कि मैं मेरठ आपसे मिलने आऊंगा , वायदे ही रह गएजा ही नहीं पाया और वे हम सबको छोड़कर जाने किस लोक चले गए, जाने कोन सी नदी की जल समाधी ले ली
मेरे सामने उनके द्वारा भेजी गयी पुस्तक " मेरे चुनिन्दा गीत" पडी है, मुख्य पृष्ट पर भाई भारत स्वयं विराजमान हैयह पुस्तक कुछ माह पहले उन्होंने मेरे पास समीक्षार्थ भेजी थीसमीक्षा अभी तक नहीं लिखी जा सकी और एक तरह से यह अच्छा ही हुआमेरे जैसा अल्प बुद्धी वाला व्यक्ति भला कैसे इतने बड़े गीतकार के गीतों की समीक्षा लिख पाता

बी.एल.गौड़

No comments: