एक सितारा टूटा नभ से जाने कहाँ गया
वह गीतों का हरकारा जाने कहाँ गया।
हिंदी गीत के पुरोधा , अद्वितीय गीतकार श्री भारत भूषण यों तो १७ दिसम्बर, २०११ सांय चार बजे इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, पर वास्तविकता तो इससे परे है। मैं समझता हूँ जब तक हिंदी गीत विधा जीवित रहेगी तब तक मोजूद रहेंगे हम सबके बीच भाई भारत भूषण ।
पिछले लगभग चार साल से मैं लगातार अपना पाक्षिक पत्र "दी गौडसन्स टाइम्स " उन्हें भेजता रहा हूँ। जब कभी उनका हाल जानने के लिए फोन करता तो बड़े उत्साह से उत्तर देते, "मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब तो और अच्छा महसूस कर रहा हूँ "फिर ढेर सारी बातें पत्र में छपी हुई कविताओं पर होती और फिर मेरे सम्पादकीय क़ी प्रशंसा की जाती । फिर मैं भी दूसरे साहित्यकारों की तरह ही अपनी रचना की बढाई सुनकर मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, उन्हें धन्यवाद देता और बातचीत का दी एंड हो जाता ।
लगभग तीन वर्ष पहले उनका एकल कविता पाठ दिल्ली हिंदी भवन में होना था। उससे पहले मैंने उन्हें नहीं देखा था। देखा आगे से उठकर पीछे क़ी और एक कृषकाय शरीर आधे बाजू की कमीज और पेंट पहने चश्मा लगाय आ रहा है। मुझे तो साथ बैठे मित्र ने बताया क़ी यही भारत भूषण जी है। मैं बड़ी तेजी से उनके समीप पहुंचा , प्रणाम करने पर उन्होंने मुझसे पूछा " आप कोन है, माफ़ करना मैं पहचान नहीं पाया" जब मैंने परिचय दिया तो वह मुझसे लिपट गए और गदगद स्वर में बोले " भई लिखने में तो कमाल करते हो, तुमाहरे सम्पादकीय बड़ी मीठी मार मारते है। "
इस मुलाकात के बाद ओपचारिक जान पहचान ने एक मित्रता का रूप ले लिया । मेरे लगातार किये गए वायदे कि मैं मेरठ आपसे मिलने आऊंगा , वायदे ही रह गए। जा ही नहीं पाया और वे हम सबको छोड़कर न जाने किस लोक चले गए, न जाने कोन सी नदी की जल समाधी ले ली ।
मेरे सामने उनके द्वारा भेजी गयी पुस्तक " मेरे चुनिन्दा गीत" पडी है, मुख्य पृष्ट पर भाई भारत स्वयं विराजमान है। यह पुस्तक कुछ माह पहले उन्होंने मेरे पास समीक्षार्थ भेजी थी। समीक्षा अभी तक नहीं लिखी जा सकी और एक तरह से यह अच्छा ही हुआ । मेरे जैसा अल्प बुद्धी वाला व्यक्ति भला कैसे इतने बड़े गीतकार के गीतों की समीक्षा लिख पाता।
बी.एल.गौड़
No comments:
Post a Comment