उस्ताद रईस खॉं
शास्त्रीय संगीत के जितने गहरे फनकार हैं लाइट म्यूजिक में भी आप उतनी ही महारत
रखते हैं। सुप्रसिद्ध फिल्म म्यूजिक कंपोजर मदनमोहन आपके शागिर्दों में थे जिन्हें
तमाम यादगार धुनों से इन्होंने ही लैस किया था। पर कितने लोग जानते हैं कि रईस खॉं
एक पाएदार शायर भी हैं। लीजिए पेश हैं उनकी ग़ज़लों के चंद चुनिंदा शेर-
ख़त लिख रहा हूं
अहदे मुहब्बत को तोड़कर
काग़ज़ पे आंसुओं की
जगह छोड़-छोड़कर
तू फिक्रमंद क्यूं
है मेरे दिल को तोड़कर
मैं खुद ही जा रहा
हूं तेरा शहर छोड़कर
ये दास्ताने जीस्त
भी कितनी तबील है
पढ़ना पड़ी है मुझे
वरक मोड़-मोड़कर
कल रात लिखने बैठा
ग़ज़ल तेरे नाम से
अल्फाज़ सामने थे
खड़े हाथ जोड़कर।
एक दूसरी ग़ज़ल के
कुछ शेर देखें-
तुम्हारे शहर में
भटके हैं अजनबी की तरह
किसी ने बात न पूछी आदमी
की तरह
ये माहताब-सा कुछ है
या माहताब है ये
सितारे सोच में डूबे
हैं फलसफी की तरह
हमारे जख्म कहां तक
सिओगे चारागरो
बहार आते ही खिल
जाएंगे कली की तरह।
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