प्यार में देश विदेश हुआ|
जी हाँ, अपनी जमीन पर आने को मन हमेशा तडफता है, अपनी जननी जो है. एक बेहतरीन साक्षात्कार विख्यात सितारवादक रईस खान जो मूलतः भारतीय हैं परन्तु उनकी चौथी बेगम विल्कीज खान का प्यार उनको पकिस्तान ले गया, के साथ प्रवासी संसार का |
विश्वशब्द की धरा पर न जाने कितनी बार शब्द को झकझोरते हुए आदरणीय पंडित सुरेश नीरव अपना साक्षात्कार अपनी भारत माता के ममत्व में दे चुके हैं | आज वह ही एक बेहतरीन साक्षात्कार जो प्रवासी संसार का एक मशहूर शायर रईस खान के साथ हुआ की मीठी -मीठी सुगंध अपने शब्दों की विकिरित रश्मियों के द्वारा आप तक एक अद्भुत अंदाज में पेश की है, पढ़कर मजा आ गया|
रईस साहब मुहर्रम के दिनों में पैदा हुए और वो भी अस्पताल में नहीं बल्कि एक बेशकीमती रॉल्सरायज़ कार में। रईस खान होलकर राजघराने के भी बेहद लाडले हैं | रईस खान के उस्ताद अन्य कोई नहीं बल्कि उनके ही वालिद जनाब उस्ताद मुहम्मद खॉं मेवाती एक मशहूर सितारवादक थे | उन्होंने पाकिस्तान के बारे में बताया कि-जिस मुल्क में फनकार की इज्जत नहीं होती वो मुल्क हमेशा पिछड़ जाता है। भारत एक फनकार को अच्छी इज्जत देता है | उस्ताद रईस खॉं शास्त्रीय संगीत के जितने गहरे फनकार हैं लाइट म्यूजिक में भी आप उतनी ही महारत रखते हैं। ये बेहतरीन जानकारी रईस खान मशहूर सितारवादक के बारे में आदरणीय श्री नीरवजी ने हमें ब्लॉग पर लिखकर दी है, ऐसे साक्षात्कार से हमें अवगत कराने के लिए आदरणीय श्री नीरवजी को बहुत-बहुत बधाई और मेरे नमन |
रईस खान की गजलों की बानिगी देखिए-
ख़त लिख रहा हूं अहदे मुहब्बत को तोड़कर
काग़ज़ पे आंसुओं की जगह छोड़-छोड़कर
तू फिक्रमंद क्यूं है मेरे दिल को तोड़कर
मैं खुद ही जा रहा हूं तेरा शहर छोड़कर
ये दास्ताने जीस्त भी कितनी तबील है
पढ़ना पड़ी है मुझे वरक मोड़-मोड़कर
कल रात लिखने बैठा ग़ज़ल तेरे नाम से
अल्फाज़ सामने थे खड़े हाथ जोड़कर।
एक दूसरी ग़ज़ल के कुछ शेर देखें-
तुम्हारे शहर में भटके हैं अजनबी की तरह
किसी ने बात न पूछी आदमी की तरह
ये माहताब-सा कुछ है या माहताब है ये
सितारे सोच में डूबे हैं फलसफी की तरह
हमारे जख्म कहां तक सिओगे चारागरो
बहार आते ही खिल जाएंगे कली की तरह।
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