किनारे नदी को
डुबाने लगे हैं
ये किस्से खबर बन
के आने लगे हैं
कहीं डूब जाए न
मुर्दा कोई भी
इन्हें कोच
ट्यूशन पढ़ाने लगे हैं
जिन्हें सेंकनी
है सियासत की रोटी
वो मुर्गों-सा हम
को लड़ाने लगे हैं
रहे जो जनम से ही
मिट्टी के माधौ
चढ़ावा उन्हें हम
चढ़ाने लगे हैं
गधा मानकर था
किया जिन को खारिज़
वही टांग अपनी
अड़ाने लगे हैं।
पंडित सुरेश नीरव
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