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Friday, February 3, 2012

गीत रूठे हैं, गज़ल के गांव में अंधियार है


गीत रूठे हैं,    गज़ल के गांव में अंधियार है


नागेश पांडे'संजय' ने जब से ब्लाग और फेसबुक से पोस्ट चोरी होकर बैकडेट में प्रकाशित होने लोमहर्षक वर्णन सुनाये हैं तब से नई रचना पोस्ट करने का साहस नहीं जुटा पा रहा।अतःअपने गीत संग्रह'अक्षांश अनुभूतियों के'से एक गीत दे रहा हूं--

गीत रूठे हैं,    गज़ल के गांव में अंधियार है
फिर भी हमको जूझते-लडते मनुज से प्यार है
चंदनी स्पर्श,   मादक छुअन बीती बात है
हर कदम पर शेष केवल घात है,प्रतिघात है
भावनायें शुष्क कीकर औ बबूलों सी हुईं
कामनायें कलुष सी हैं हर तरफ छाई हुईं
प्रतिकूल मौसम की चुनौती ,पर हमें स्वीकार है
गीत रूठे हैं,    गज़ल के गांव में अंधियार है
संवेदना के अधर पर धरते नहीं हैं बांसुरी
दर्द की शबनम भिगोती नहीं मन की पांखुरी
एहसास की आंखों मोतियाबिंद है पसरा हुआ
गहमा-गहमी   उलझनों में आदमीं बहरा हुआ
आंसुओं को बहने तक का अब नहीं अधिकार है
गीत रूठे हैं,    गज़ल के गांव में अंधियार है
प्रगति के इस दौर में शैतान का ही जोर है
संतान आदम की बहुत लाचार है ,कमज़ोर है
सभ्यता के घर सारे बन गये शमशान हैं
कलयुगी षडयंत्र से बेबस स्वयं भगवान हैं
जानता हूं ,आजकल सच किस कदर लाचार है
गीत रूठे हैं,    गज़ल के गांव में अंधियार है
    ------अरविंद पथिक
9910416496

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