प्रिय मनन के परिश्रम और विकास मैं साक्षी रहा हूं।नीरवजी साहित्यिक और मंचीय व्यस्तताओं के बीच चाह कर भी घर-परिवार को कितना समय दे पाते होंगे यह बात लेखन से जुडे व्यक्तित्व भली भांति समझते हैं।फिछले लगभग १५-१६ वर्ष से नीरव जी के परिवार का अभिन्न हिस्सा होने के कारण मै यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि नीरवजी ने संस्कारों ,परिश्रम और स्वाभिमान की जो पूंजी अपने चिरंजीव डा०मनन को दी है उसके साथ वे प्रगति के उन सोपानों को छुयेंगे कि देखने वालों की टोपियां जायेगिर गी।चरैवेति चरैवेति।
अरविंद पथिक
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