अरविंद पथिक
प्रिय आत्मन,
आपने मेरे परिवार और मेरे संघर्ष को लेकर जो टिप्पणी की है उसे पढ़कर अभिभूत हूं।
आप मेरे परिवार में हैं और मेरे परिवार में नहीं भी। आप सचमुच अरविंद हैं। जो जल में रहकर भी जल से निर्लिप्त होता है। निकटता में दूरी और दूरी में निकटता ही हठ योग है। आप हठी तो हैं हीं। हठात मैं भी आपका प्रशंक हुआ चाहता हूं। और शायद हो भी चुका हूं। शायद इसे आप भी महसूसेते होंगे।
जब भी दिल से तुझे याद करता हूं मैं
खुश्बुओं के नगर से गुजरता हूं मैं
आपकी निश्छल,निर्मल चेतना को प्रणाम..
अभिन्न
-पंडित सुरेश नीरव00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
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