श्री घनश्याम वशिष्ठ
बंधुवर आज की
राजनीति के चाल,चेहरे और चरित्र पर आपने जो सशक्त व्यंग्य किया है वह काबिले ताऱीफ
है। यकीनन आज ढोंगी आचटरम और कुटिलता का ही बोलबाला नेताओं के आचरणों में दिखाई
देता है। इनको बेनकाब करना रचनाकार का मौलिक कर्तव्य बनता है। बधाई...
सोच चले जा मिथ्या
की जय
बोल सत्य का मुंह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
नेह दिखाकर जैसे भी हो
भर ले प्याला जनमत का
बन जा कुटिल कुशल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
-घनश्याम वशिष्ठ
बोल सत्य का मुंह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
नेह दिखाकर जैसे भी हो
भर ले प्याला जनमत का
बन जा कुटिल कुशल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
-घनश्याम वशिष्ठ
0000000000000000000000000000000000000000000000000
श्री मृगेन्द्र
मकबूल
पालागन। बहुत
दिनों बाद आपकी लोकेशन शिनाख्त हुई है। आप का तो कहीं कोई अता-पता ही नहीं चल रहा
है। चलिए हफीज जलंधरी साहब की उम्दा ग़ज़ल के साथ आप नमूदार हुए यह एक राहतजनक बात
है। इन शेरों का जवाब नहीं है-
तल्ख़ कर दी है ज़िन्दगी जिसने
कितनी मीठी ज़बान है प्यारे।
जाने क्या कह दिया था, रोज़े-अज़ल
आज तक इम्तिहान है प्यारे।
मैं तुझे बेवफा नहीं कहता
दुश्मनों का बयान है प्यारे।
सारी दुनिया को है ग़लतफ़हमी
मुझ पे तू मेहरबान है प्यारे।
हफीज जलंधरी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
कितनी मीठी ज़बान है प्यारे।
जाने क्या कह दिया था, रोज़े-अज़ल
आज तक इम्तिहान है प्यारे।
मैं तुझे बेवफा नहीं कहता
दुश्मनों का बयान है प्यारे।
सारी दुनिया को है ग़लतफ़हमी
मुझ पे तू मेहरबान है प्यारे।
हफीज जलंधरी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
No comments:
Post a Comment