तीन लघुकथाएं-
घोटाला
मंत्रीजी को जेल।
बहुत बड़े घोटाले में शामिल थे मंत्रीजी। अखबार में छपी खबर को पति महोदय ने ज़ोर-ज़ोर से
पढ़कर पत्नी को सुनाया। पास ही होमवर्क कर रही नन्ही बिटिया ने भी इस खबर को सुना।
बाद में अपनी मां से उसने घोटाले का मतलब पूछा। मां ने बड़े प्यार से बिटिया के
सिर पर हाथ फेरते हुए बताया कि- सरकारी संपत्ति में से अपना हिस्सा बना लेना
घोटाला है। संतुष्टि में लड़की ने सिर हिलाया। दूसरे दिन दफ्तर जाते समय पत्नी
ने पति को हिदायत दी- बिटिया का सामान लाना मत भूलना। शाम को पतिदेव जैसे
ही दफ्तर से घर लौटे बिटिया को आवाज़ लगाई और उसे एक बैग थमा दिया। जिसमें
प्लास्टिक की फाइलें,सफेद कागज़,पेन,पेंसिल,रबर और गोंद की डिबिया थी। लड़की
भैंचक्की-सी इन चीज़ों को देख रही थी। उसके कानों में मां के शब्द गूंजे- सरकारी
संपत्ति का अपने लिए इस्तेमाल भ्रष्टाचार है। घोटाला है। वह पिताजी के गले
लगकर रोने लगी- मुझे नहीं चाहिए ये चीजें। मैं इन्हें लूंगी तो मंत्रीजी की तरह
आपको भी पुलिस पकड़कर जेल में बंद कर देगी।
पंडित सुरेश नीरव
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रिश्ते
सर झुकाए बूढ़ा आदमी
सड़क पर चला जा रहा था। चल क्या रहा था। अपने आप को घसीट-सा रहा था। उसके आगे कुछ
नौजवान मस्ती में चले जा रहे थे। अचानक बूढ़े को ठोकर लगती है और वो लड़खड़ाकर आगे
जाते हुए उन नौजवानों में से एक लड़के से टकरा जाता है। अबे बुड्ढे देखकर नहीं
चलता। अंधा है क्या। वो नौजवान गुर्राता है।
बेटा...आंख में
मोतियाबिंद उतर आया है। साफ दिखाई नहीं देता। कातर आवाज में बूढ़ा गिड़गिड़ाया।
अंधाश्रम में
भर्ती क्यों नहीं हो जाता। सड़क पर क्यों चला आया मटरगश्ती के लिए। लड़के बूढ़े को घेर लेते हैं। पेड़ के नीचे
खड़ी स्कॉर्पियो में बैठे कुछ लड़के इस बेशर्मी का तमाशा देख रहे थे। अचानक उनकी
कार इन उदंड लड़को के सामने आकर रुकती है।छाताधारी सैनिकों की तरह लड़के कार से उतरते
हैं और इन लड़कों की गर्दनें पकड़ लेते हैं। भाईसाहब आप लोग कौन है..हम तो आप
लोगों को जानते तक नहीं। चूहे गिड़गिड़ते हैं।
अच्छा बेटा हम तो
तेरे भाईसाहब हो गए और तेरी बाप की उम्र का ये बुजुर्ग तुम लोगों के लिए अबे
बुड्ढा है। मजबूत काठी का एक
नौजवान एक लड़के के बाल खींचते हुए गुर्राया-चलो स्सालो सब पैर छूकर बुजुर्ग से
माफी मांगो।
बाबूजी हमें माफ
कर दो..लड़के पैरों में
गिरकर फिर गिड़गिड़ते हैं। मैं सोचता हूं कि क्या दुनिया के सारे रिश्ते ताकत की ठोकर से ही
निकलते हैं।
पंडित सुरेश नीरव
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ईमानदारों के
बीच
दिल्ली जानेवाली
ट्रेन भोपाल स्टेशन पर आकर रुकती है। सारे डब्बे खचाखच भरे हुए हैं। दो-तीन नौजवान
बिना रिजर्वेशन के ही स्लीपर कोच में घुस जाते हैं। हाथ में रिजर्वेशन चार्ट लिए
सफेद पेंट और काला कोटधारी टी.टी. टिकट चैक करने से पहले अपने आगे-पीछे कुछ
ले-देकर सीट हथियाऊ रिजर्वेशन लोलुप चेहरों को अपनी अनुभवी कारोबारी नज़र से
ताड़ता है। कमज़ोर प्रत्याशियों को वह अगले स्टेशन पर डब्बे से बाहर उतरने की
हिदायत देता है और दुधारू सवारियों को एक कोने में ले जाकर फुसफुसाता है- तीन
सौ रुपये..। कुछ यात्रियों ने श्रद्धपूर्क उसे दक्षिणा भेंट की और सेवा की एवज
में बर्थ की मेवा हथिया ली। एक अनुभवहीन
यात्री गैरव्यावसायिक हेंकड़ी के साथ बोला-हम भ्रष्टाचार हटाओ रैली में भाग
लेने दिल्ली जा रहे हैं।
मगर आपका रिजर्वेशन नहीं है। बिना रिजर्वेशन के
इस डब्बे में यात्रा करना कानूनन जुर्म है।
देखिए अचानक ही
रैली में जाना पड़ रहा है। मैं खड़े-खड़े ही चला जाऊंगा। उसकी ईमानदारी के गुब्बारे में टी.टी. ने सुई चुभो दी
थी।
जी नहीं आपको
जुर्माना देना ही पड़ेगा। जो जहां है उसे वहीं से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना होगा।
आखिर हमारा भी तो कोई फर्ज है इस देश के लिए। टी.टी की जेब से रिश्वत के नोट झांक-झांक कर उसका
मज़ाक उड़ा रहे थे। और रिश्वत के बल पर बर्थ हथिया चुके मुसाफिर उसे नसीहत दे रहे
थे-जुर्माने की वो रसीद काट कर आपको दे रहा है। अपनी जेब में तो पैसा रख नहीं
रहा। एक जिम्मेदार नागरिक की तरह आप को अपनी गलती का जुर्माना दे-देना चाहिए।
यकीनन ईमानदारों की
महफिल में एक अकेला वही तो बेईमान था।
पंडित सुरेश नीरव
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ज़ियाबाद-13
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