आज रोज़ डे है कुछ भाई लोग बता रहे थे प्रपोज़ डे है कुछ बरस पहले जब हम आज़ाद पंछी हुआ करते थे एक गीत शायद ऐसे किसी रोज डे को ही लिखा था और जिसके सहारे पत्नी को कई बरसों तक बहलाता रहा आखिरकार मेरे गीतसंग्रह 'अक्षांश अनुभूतियों का 'का हिस्सा बना इस प्रपोज़ डे पर आप को रोज़ समझ कर भेंट कर रहा हूं----
मेरे चारों ओर भीड है, पुष्प-गुच्छ मालाओं वाली
किंतु प्रिये ,इस अंतर्मन का कोमल-कोना खाली-खाली
मेरे हस्ताक्षर लेती हैं कोमल कलिका सी बालायें
मन को भेद-भेद जाती हैं तन्वंगी नाज़ुक अबलायें
तेरी प्राण लता ना इनमें कह उठता है मन का माली
मेरे चारों ओर भीड है, पुष्प-गुच्छ मालाओं वाली
किंतु प्रिये ,इस अंतर्मन का कोमल-कोना खाली-खाली
कभी-कभी तो मन करता है किसी को अपने पास बुला लूं
मैं भी अपने मन में किसी की मादक-मोहक छवि बसा लूं
किंतु, कौंध जाती नयनों में फौरन ही तस्वीर तुम्हारी
मेरे चारों ओर भीड है, पुष्प-गुच्छ मालाओं वाली
किंतु प्रिये ,इस अंतर्मन का कोमल-कोना खाली-खाली
कुछ के अधरों पर गुलाब हैं और स्वयं कुछ रजनीगंधा
हर चेहरा सुंदर लगता है , हे,ईश्वर क्या गोरखधंधा?
कुछ हैं सांवली,कुछ हैं सलोनी,रूप-दर्प की कुछ मतवाली
किंतु प्रिये ,इस अंतर्मन का कोमल-कोना खाली-खाली
मेरे चारों ओर भीड है, पुष्प-गुच्छ मालाओं वाली
इन में सब में सुंदरता है, मादकता है, मोहकता है
निश्चय ही सज्जित रहने की इनमें अच्छी चातुरता है
किंतु,चतुरता वाले चेहरे सहज़-सरलता कहां से लायें?
आकर्षित कर तो लेते हैं,लेकिन मन में ठहर ना पायें
माना इस शैतान नज़र ने, हर सूरत देखी-भाली
मेरे चारों ओर भीड है पुष्प-गुच्छ मालाओं वाली
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