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Saturday, February 11, 2012

लेखनी के धनी : अरविन्द पथिक

 शुभकामना - डा. नागेश पांडेय 'संजय' 

अच्छा जी, तो आप भी अब हो गए चालीस के. 
मगर इसको  कह रहे क्यों दाँत अपने पीस के ?
जो किया, जब भी किया, निश्छल-सहज होकर किया,
इसलिए तो ज़माने में जी,  शान से हो जी सके.
मित्र हो मेरे पुराने,  याद याराने सभी;
याद है संघर्ष भी, जब आप थे इक्कीस के.
कौन कहता जगत में कुछ प्राप्त कर पाए नहीं, 
लेखनी के धनी हो जी, सन्निकट वागीश के. 
जियो सौ-सौ साल जग में नित्य नूतन पथ गढ़ो,
ह्रदय नभ को छू न पाएँ भाव साथी टीस के.

(पथिक जी की एक कविता के प्रत्युत्तर में लिखी गयी शुभकामना कविता )
डा.नागेश पांडेय 'संजय'

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