शुभकामना - डा. नागेश पांडेय 'संजय'
अच्छा जी, तो आप भी अब हो गए चालीस के.
मगर इसको कह रहे क्यों दाँत अपने पीस के ?
जो किया, जब भी किया, निश्छल-सहज होकर किया,
इसलिए तो ज़माने में जी, शान से हो जी सके.
मित्र हो मेरे पुराने, याद याराने सभी;
याद है संघर्ष भी, जब आप थे इक्कीस के.
कौन कहता जगत में कुछ प्राप्त कर पाए नहीं,
लेखनी के धनी हो जी, सन्निकट वागीश के.
जियो सौ-सौ साल जग में नित्य नूतन पथ गढ़ो,
ह्रदय नभ को छू न पाएँ भाव साथी टीस के.
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