सोशल नेटवर्किंग साइट्स शुरू तो की गई थीं शायद दोस्ती ,संवाद और अभिव्यक्ति के निर्बाध प्रवाह के लिये पर जैसा कि अक्सर होता है कि हर आविष्कार का उपयोग इंसान कम शैतान ज़्यादा करते हैं अश्लील,श्लील लिखना देखना ,किसी के विचार से सहमत होना ना होना,किसी बहस में
शामिल होना ना होना सब कुछ व्यक्ति विशेष की अपनी सुविधा से इस अंतर्जाल ने संभव कर दिया है फिर भी यदि हमें,काटजू,कोर्ट,कपिल और कपियों से जूझना पड रहा है तो वज़ह क्या है आइये सोंचें----?
यह भी नहीं करना चाहते तो मेरे इस छंद का आनंद लें,वैसे व्याकरण ,मात्रा और मीटर गिनने को सारे छल छंदी स्वतंत्र हैं जब बाबा तुलसीदास को आपने नहीं बख्शा तो इस नाचीज़ अरविंद पथिक को बख्श कर उसके सर पर अहसानों का हिमालय मत रखिये---------
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ऐंठते,दहाडते, गुर्राते जो मंच पर
नेपथ्य में दिखाते दांत दुम को हिलाते है
प्रेमगीत गाने वाले जनता के मनमीत
निंदारस में खूब डुबकियां लगाते हैं
देख चुका बहुत बार संशय नहीं है,रंच
रबड की ही रीढ वाले सूरमा कहाते हैं
सत्य की टूटी हुई ढाल लिये पथिक जी
धुनते है सिर कुछ समझ नहीं पाते हैं
9910416496
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