भई प० सुरेश नीरव, आपकी बेहद पाएदार ग़ज़ल पढी.
ग़ज़लों में जी रहा हूँ मैं अपने को जोड़ कर
लफ़्ज़ों में आंसुओं की जगह छोड़-छोड़ कर।
अमूमन ग़ज़ल का एक या दो शेर हासिले- ग़ज़ल होता है, मगर आपकी इस ग़ज़ल
का हरेक शेर हासिले - ग़ज़ल है। लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई। आज आमद दर्ज़
कराते हुए हसरत जयपुरी की एक ग़ज़ल पेश है।
शोले ही सही, आग लगाने के लिए आ
फिर तूर के मंज़र को दिखाने के लिए आ।
ये किसने कहा है, मेरी तकदीर बना दे
आ, अपने ही हाथों से मिटाने के लिए आ।
ऐ दोस्त, मुझे गर्दिसे- हालात ने घेरा
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिए आ।
दीवार है दुनिया, इसे राहों से हटा दे
हर रस्म मुहब्बत की मिटाने के लिए आ।
मतलब तेरी आमद से है, दरमाँ से नहीं
हसरत की क़सम, दिल ही दुखाने के लिए आ।
मृगेन्द्र मक़बूल
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