Search This Blog

Thursday, July 12, 2012

"तलवार खूं में रंग लो अरमान रह ना जाये

"तलवार खूं में रंग लो अरमान रह ना जाये
अध्यापकों को हरामखोर कहने वालों की आज कमी नहीं है ।ज़मीनी हकीकत जाने बिना मीडिया,अधिकारी और नेता और समाज जी भर कर इन्हें गरियाते हैं।मैं स्वयं एक अध्यापक हूं पर १८ साल से इस सम्मानित पेशे में कभी जानबूझकर छात्रों का अहित किया हो या हराम खोरी की हो याद नहीं पडता।जिस ज़गह भी अपने साथी अध्यापकों के मान-सम्मान के लिये छात्रों के हित के लिये संघर्षरत रहा।पिछले ६ महीनों से अपने विद्यालय के प्रशासन से संघर्षरत हूं।ऐसे में प्रधानाचार्य के मुंह लगे अध्यापक ने मुझे जान से मारने की धमकी दी।इस घटना की जानकारी जब प्रधानाचार्य को मैने लिखित रूप में दी तो उनके उस चहेते अधऽयापक ने मेरी विरूद्ध ही पुलिस कम्प्लेंट कर दी।मैने भी शिकायत दर्ज़ करायी तथा घटना की जानकारी समस्त विभागीय अधिकारियों को दी।अंततः तमाम दबावों के बाद पुलिसिया कार्यवाही तो रूकी।पर मुख्यमंत्री कार्यालय तक को लिखने के बाद भी जब प्रधानाचार्य ने घटना के बारे में मेरा बयान तक लेना ज़रूरी नहीं समझा तो हार कर मैने अपना ट्रांसफर करा लिया।अब सर्विस रिकार्ड तक भेजने में मेरे पूर्व प्रधानाचार्य जी हीला हवाली कर रहे हैं।
मीडिया जगत और राजनेताओं से भी मेरे संपर्क संबंध हैं ।मैं चाहूं तो अपने स्तर पर कार्यवाही कर सारी समस्यायें दूर करवा सकता हूं पर प्रोसीजर से चलकर कितनी देर और दूर तक अन्याय के खिलाफ लडा जा सकता है।पर कई बार परेशान होकर इस वाक्य से भरोसा उठने लगता है कि सत्य की जीत होती है।मैं तो रोज सच को अकेला और हताश देखने का आदी हो चला हूं और समाज तो स्वयं को बचाने में लगा रहता है।जब सारे परिदृश्य पर नज़र डालता हूं तो जेल में लिखी पं० रामप्रसाद बिस्मिल की पंक्तियां याद आती हैं---"---जिन्हे दंगों बचाया था जिनके लिये जान तक की परवाह नहीं की थी जिनके लिये दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा वे लोग देखना आना तो दूर पहचानने से ही इनकार करने लगे----।'
"तलवार खूं में रंग लो अरमान रह ना जाये
बिस्मिल के सर पे कोई अहसान रह ना जाये।"

No comments: