सर झुकाए बूढ़ा आदमी
सड़क पर चला जा रहा था। चल क्या रहा था। अपने आप को घसीट-सा रहा था। उसके आगे कुछ
नौजवान मस्ती में चले जा रहे थे। अचानक बूढ़े को ठोकर लगती है और वो लड़खड़ाकर आगे
जाते हुए उन नौजवानों में से एक लड़के से टकरा जाता है। अबे बुड्ढे देखकर नहीं
चलता। अंधा है क्या। वो नौजवान गुर्राता है।
बेटा...आंख में
मोतियाबिंद उतर आया है। साफ दिखाई नहीं देता। कातर आवाज में बूढ़ा गिड़गिड़ाया।
अंधाश्रम में
भर्ती क्यों नहीं हो जाता। सड़क पर क्यों चला आया मटरगश्ती के लिए। लड़के बूढ़े को घेर लेते हैं। पेड़ के नीचे
खड़ी स्कॉर्पियो में बैठे कुछ लड़के इस बेशर्मी का तमाशा देख रहे थे। अचानक उनकी
कार इन उदंड लड़को के सामने आकर रुकती है।छाताधारी सैनिकों की तरह लड़के कार से उतरते
हैं और इन लड़कों की गर्दनें पकड़ लेते हैं। भाईसाहब आप लोग कौन है..हम तो आप
लोगों को जानते तक नहीं। चूहे गिड़गिड़ते हैं।
अच्छा बेटा हम तो
तेरे भाईसाहब हो गए और तेरी बाप की उम्र का ये बुजुर्ग तुम लोगों के लिए अबे
बुड्ढा है। मजबूत काठी का एक
नौजवान एक लड़के के बाल खींचते हुए गुर्राया-चलो स्सालो सब पैर छूकर बुजुर्ग से
माफी मांगो।
बाबूजी हमें माफ
कर दो..लड़के पैरों में
गिरकर फिर गिड़गिड़ते हैं। मैं सोचता हूं कि क्या दुनिया के सारे रिश्ते ताकत की ठोकर से ही
निकलते हैं।
-पंडित सुरेश नीरव
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