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Friday, August 31, 2012

भरत चरित्र के महाकवि को प्रणाम..

श्री भगवान सिंह हंसजी...
आप मेरे अत्यंत आत्मीय हैं। और मेरे शुभेच्छु भी। आपने भोपाल में स्वर्णमुकुट पहनाकर जो मेरा सम्मान किया था वह मुझे आज भी स्मरण है। आप लोगों की शुभकामनाएं ही हैं जो यह सब हो जाता है वर्ना मैं नाचीज़ किस काबिल हूं। आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद। संभव हो तो कल पधारें। मैं आपको आमंत्रित करता हूं। मेरे प्रणाम..
-पंडित सुरेश नीरव

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