अद्भुत चित्र, बधाई, श्री वकील साहब. इस दुनिया के रंगमंच पर हर कोई अपनी कला से इस धरा को चाँद-सा प्रस्तुत करता है, यह उसकी अपनी चित्रशाला है जिसकीअनूठी चित्रकारिता से एकाग्र होकर बिम्ब चित्रित करने में एक भिन्न चित्रयात्री होने का दावा हाशिल करता है और वह ही अपनी रचना में सक्षम होता है. यही वह कला है जिसको वह इस अनुपम वसुंधरा के हाशिये पर रखकर यादगार या यों कहिये एक धरोहर बनाता है जिसको मानव अपने ह्रदयपटल पर उतारता है. यही वह सदकला या सदरचना है जो युगांतर संतति का शिक्षा का दायित्व बनता है. सच कहूँ तो मुझे इस चतुर्मुख चित्र प्रियदर्शनी में सच्चे रचनाकार ब्रह्मस्वरूप ही द्रष्टिगोचर होते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं. पुनः बधाई श्री शर्माजी को, मेरे प्रणाम.
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