हंसावलि
जर जर तन लागी रही , रेत खेत मग माहिं,
जतनु बहुर बहुर कीयौ, तनकउ निकसत नाहिं।
देखि पतंगा दीप ढ़िंग, प्रीति रहौ संगवाय,
तरसु न नेकऊ करि उन, प्राणन दियौ गंवाय।
गुरु नमः न जनहिं करहिं, आबतु देखि विमान,
जन्महु कर्महिं बहुर करि, पाबतु नहिं सम्मान।
भगवान सिंह हंस
रचयिता :
बृहद भरत चरित्र महाकाव्य
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