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Friday, September 21, 2012

हंसावलि

जर जर तन  लागी रही , रेत  खेत  मग  माहिं,
जतनु बहुर बहुर कीयौ, तनकउ निकसत नाहिं।

देखि   पतंगा  दीप  ढ़िंग, प्रीति  रहौ   संगवाय,
तरसु न  नेकऊ  करि उन, प्राणन दियौ गंवाय।

गुरु नमः न जनहिं करहिं, आबतु देखि  विमान,
जन्महु  कर्महिं बहुर करि, पाबतु नहिं सम्मान।
         

भगवान  सिंह हंस 

        रचयिता :

 बृहद  भरत चरित्र महाकाव्य 

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