पंडित सुरेश नीरव |
ग़ज़ल-
दर्द के सूरज को जब लफ़्जौं में ढाला जाएगा
उस ग़ज़ल का रूह के भीतर उजाला जाएगा
जानकर ये बात सांसें हंस रही हैं ज़ोर से
ज़िंदगी का मौत के मुंह में निवाला जाएगा
साफगोई की तलब उसको अचानक क्या लगी
देखना हर वज़्म से उसको निकाला जाएगा
आप तो दरिया खुशी का सौंप सकते हैं मुझे
छलनी-छलनी दिल से वो कैसे संभाला जाएगा
मयकशी में जिसने नीरव पालिया सारा जहां
किस की खातिर अब वो मस्जिद या शिवाला जाएगा।
-पंडित सुरेश नीरव
(बिना अनुमति के इस ग़ज़ल का कहीं
भी और कैसा भी उपयोग कानूनी अपराध माना जाएगा।)
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