बहुत सुन्दर फोटो
ऐसे अंदाज में भी आना अच्छा लगता है
दिल-ए-इज़हार में नूर भी बरसने लगता है।
मुस्काती हैं यदि वो कलियाँ जहाँ,पर फैलाकर,
फिर बहार-ए-गीत भी सुनाना अच्छा लगता है।
यदि उतरी हो वो सुनहरी धूप हरी घास पर,
ऐसी मस्ती में यों वाक भी अच्छा लगता है।
जब विकिरित होती है वो चाँदनी निशांचल पर,
सनम-ए-दीदार भी यों करना अच्छा लगता है।
यदि फ़ैली हो जहाँ श्वेत चादर नागांचल पर,
तब हिम पर स्केटिंग भी करना अच्छा लगता है।
जहाँ उतरी हों अंतस पर वो विभव की परियां,
तब वह सोमरस भी यों पीना अच्छा लगता है।
और यदि वो सद अभिव्यक्ति हो जिगरे जवां पर,
ऐसे अंदाज में गाना भी अच्छा लगता है।
भगवान सिंह हंस
ऐसे अंदाज में भी आना अच्छा लगता है
दिल-ए-इज़हार में नूर भी बरसने लगता है।
मुस्काती हैं यदि वो कलियाँ जहाँ,पर फैलाकर,
फिर बहार-ए-गीत भी सुनाना अच्छा लगता है।
यदि उतरी हो वो सुनहरी धूप हरी घास पर,
ऐसी मस्ती में यों वाक भी अच्छा लगता है।
जब विकिरित होती है वो चाँदनी निशांचल पर,
सनम-ए-दीदार भी यों करना अच्छा लगता है।
यदि फ़ैली हो जहाँ श्वेत चादर नागांचल पर,
तब हिम पर स्केटिंग भी करना अच्छा लगता है।
जहाँ उतरी हों अंतस पर वो विभव की परियां,
तब वह सोमरस भी यों पीना अच्छा लगता है।
और यदि वो सद अभिव्यक्ति हो जिगरे जवां पर,
ऐसे अंदाज में गाना भी अच्छा लगता है।
भगवान सिंह हंस
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