श्री अरविंद पथिकजी.
आपने खंडवा कविसम्मेलन के जरिए आज के मंच को लेकर जो मुद्दे उठाए हैं निश्चित ही वह समसामयिक और चिंतन योग्य हैं। जिस तरह से नकली,सतही और चौर्यकला में लिप्त कवियों ने मंच को प्रदूषित किया है उस पर बोलना शायद हर ईमानदार रचनाकार का सृजनात्मक धर्म है।अगर भाषा और संस्कृति को रसातल में जाने से बचाना है तो समय रहते हमें समवेत और संयुक्तरूप से प्रयास करने ही होंगे। महज दर्शक-दीर्घा में बैठकर या शुतुर्मुगी मुद्रा में यथार्थ से आंखे चुराने की प्रवृति को हमने नहीं त्यागा तो समय-काल और संस्कृति का चक्र हमें भी नहीं छोड़ेगा। भले ही आज आवाज अकेली हो मगर नक्कारकाने में एक तूती की आवाज़ भी अपनी हैसियत रखती है। आपकी साफगोई प्रशंसनीय है। बधाई। ढेर सारी बधाई..
-पंडित सुरेश नीरव
आपने खंडवा कविसम्मेलन के जरिए आज के मंच को लेकर जो मुद्दे उठाए हैं निश्चित ही वह समसामयिक और चिंतन योग्य हैं। जिस तरह से नकली,सतही और चौर्यकला में लिप्त कवियों ने मंच को प्रदूषित किया है उस पर बोलना शायद हर ईमानदार रचनाकार का सृजनात्मक धर्म है।अगर भाषा और संस्कृति को रसातल में जाने से बचाना है तो समय रहते हमें समवेत और संयुक्तरूप से प्रयास करने ही होंगे। महज दर्शक-दीर्घा में बैठकर या शुतुर्मुगी मुद्रा में यथार्थ से आंखे चुराने की प्रवृति को हमने नहीं त्यागा तो समय-काल और संस्कृति का चक्र हमें भी नहीं छोड़ेगा। भले ही आज आवाज अकेली हो मगर नक्कारकाने में एक तूती की आवाज़ भी अपनी हैसियत रखती है। आपकी साफगोई प्रशंसनीय है। बधाई। ढेर सारी बधाई..
-पंडित सुरेश नीरव
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