आदरणीय गुरुदेव पालागन, मैं अपने परिवार से अलग और अकेला था। यह मेरा पहला मौक़ा था इस तरह का . बहुत बड़ा कार्यक्रम था, हजारों की भीड़ थी ,बीस-पच्चीस तो नेता ही थे जो निगम पार्षद से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक थे। मैंने आपको याद किया और आपके चरणों में नमन करके काव्यपाठ किया ,सुनकर लोगों ने बहुत सराहा। मन संतुष्ट हुआ। यह सब आपका ही आशीर्वाद था। मैं आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार तो व्यक्त करने लाइक नहीं हूँ , मैं तो सिर्फ आपके चरणों में माथा ही टेक सकता हूँ। मेरे पालागन।
भगवान सिंह हंस
भगवान सिंह हंस
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