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Tuesday, October 16, 2012

यह सब क्या तुम्हे याद है ?

अभिनंदन.. 
आइये जनाब आपका अभिनन्दन है
बंधे पखेरू का मौन क्रंदन है---------
टोकना नहीं भींगी हुई पलकों को
आँखों में लगा तीखा सा अंजन है--------

-"ज्योति खरे"
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यह सब क्या तुम्हे याद है ?

क्या तुम्हे अपना बचपन याद है ?
वो ऊँगली पकड़ कर नदी किनारों पर जाना
वो गादित के सवालो मैं उलझाना
वो मुझसे उनकी बारीकिय सीखना

फिर धीरे से योवन की देहलीज़ पर कदम रखना
वो महाविद्यालय की शरारते
वो जीवन का पहला प्यार और उसे अपनाना
वो कितना असहज था तुम्हारी माँ को समझाना

मगर फिर न जाने क्या हो गया ?
तुम्हारा अपनापन कहाँ खो गया
वो मेरे और तुम्हारी माँ का कमरे मैं सिमट जाना
बहु का ताने मरना, खाने को तरसाना

फिर हम तो दूसरी यात्रा पर निकल आये
वो सब जब तुम्हे याद नही हैं ,
हमारे दर्द का अहसास नहीं है
तो क्यों मेरा श्राद्ध करते हो ?

-पीयूष चतुर्वेदी, ग्वालियर
 

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