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Thursday, October 18, 2012


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प्रलय के घर प्रलय
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जी हाँ ,ये न तो व्यंग्य है ,न कोई हास्य है ,
मगर जीवन का वो सच है जिसका साक्षात्कार
आज प्रात;आठ बजकर तीन मिनिट पर मैंने किया .
       रोज़ की तरह सुबह हम अपने कंप्यूटर पर नियमित
कवितायेँ टाइप कर रहे थे ,तभी आठ बजकर तीन मिनिट पर
ऐसा महसूस हुआ की किसी ने हल्का सा धक्का दिया ,मैंने पीछे
मुडकर देखा ,कोई नहीं था ,,,वहीँ वाजू में भगवन की पूजन कर रहीं मेरी भाग्यवान
श्रीमती जी को भी ये लगा कि वो जहाँ बैठी  हैं ,उस  स्थान पर कुछ पलों केलिए
कम्पन हुआ ,,,,मुझे समझने में ज्यादा देर नहीं लगी ,,,,कि प्राक्रतिक कारणों से
पृथ्वी का  उपरी भाग या तल जब एकाएक हिल उठता है तब भूचाल की सम्भावना
बन जाती है ,और मुझें लगा कि कुछ  पलों का अहसास   मैनें और श्रीमती जी ने
महसूस किया यह मेरा ही उपनाम है ,जो करीब  तीस वर्ष पूर्व कविता लिखने के पहले
प्रकाश के साथ प्रलय लगाया था ....
                  आनन् फानन मैंने मोबाइल श्री चन्द्रदर्शन गौर जी ,मेरे अग्रज होने
के साथ ही दैनिक मध्यप्रदेश के यशस्वी सम्पादक भी हैं  उनसे ,,बात की  तब उन्होंने भी
बताया कि इस सम्बन्ध में मेरे पास कई टेलीफ़ोन आ ,चुके है सत्यता यही है कि ,
प्रात ;कुछ सेकंड के लिए भूकम्प ही आया था ,,,,,
          यहाँ इस घटना का उल्लेख करने का तात्पर्य मात्र मेरे लिए यही है कि
आज प्रकाश के साथ कई वर्षों से जिस प्रलय को साथ लिए चल रहा था ,उसे मैंने करीव से
जाना ,और उतने पलों में यह माना कि प्रथ्वी माता का जिस बेरहमी से हम दौहन एवं ,
जंगलों की बेदर्दी से सफाई कर रहे है ,शायद ये संकेत समय -समय पर प्रक्रति ऐसे
माध्यमों से हमे देती है ,,लेकिन हम है कि मानते ही नहीं ,,,,,,,,,
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प्रकाश प्रलय
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