बेमजा़ थे सबके सब फिर भी मजा़ देने लगे
एक बुत मैने तराशा हो गई सबको ख़बर
शहर के पत्थर सभी अपना पता देने लगे
एक बुत मैने तराशा हो गई सबको ख़बर
शहर के पत्थर सभी अपना पता देने लगे
टुकड़े टुकड़े रेशा रेशा बंट गया जबसे वजूद
नाम तो कुछ और था मुझको वो क्या देने लगे
नाम तो कुछ और था मुझको वो क्या देने लगे
बादलों आकर गिराना आंख से आंसू तभी
सुर्ख़ सूरज जब परिंदों को सजा़ देने लगे।
सुर्ख़ सूरज जब परिंदों को सजा़ देने लगे।
-अशोक वर्मा
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