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Thursday, November 29, 2012

गिरीश नारायण पांडे की ग़ज़ल

ग़ज़ल- 
हर व्यक्ति खेत भी है , बीज भी है
गौर से , गहराई से समझने की चीज़ भी है।

बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ मिट्टी में मिल गयीं,

बचीं वे ही जिनमे संवेदना की तमीज भी है।

वो व्यवस्था जो हमें अक्सर फेल करती है ,
क्या उसे पता है कि वह मरीज़ भी है।

चाँद के हुस्न की इन्तहा पूनम ही नहीं है ,

उतने ही हुस्न से सराबोर दूज व तीज भी है।

ग्रहों व कुंडली का असर उनपर क्या होगा ,

जिनके मन में पूरे कायनात की ताबीज़ भी है।

हर व्यक्ति तो अपने में एक पूर्ण इकाई है ,

और हर व्यक्ति एक हिस्साए सिरीज़ भी है।

-गिरीश पाण्डे
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हर व्यक्ति तो अपने में एक पूर्ण इकाई है ,और हर व्यक्ति एक हिस्साए सिरीज़ भी है।-गिरीश पाण्डेजी बहुत अच्छे शेर कहे हैं आपने। नई जमीन,नई सोच,.वाह..वाह आनंद आ गया।- सुरेश नीरव
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