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Monday, April 1, 2013

शब्दऋषि पं सुरेश नीरव

तृप्त  के  इस  संसार  में,
अतृप्त  जन  सदैव  रहा,
कालीदह या नृत्यफागुन,
बाँसुरी  वह  पकड़े   रहा।  




शब्दऋषि पं सुरेश नीरव,
शब्द की महिमा  अपार।
ये   इतना   भारी    लगा,
जो दूजे पर  दिया उतार।



मेरे पालागन 


 

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