महाकवि श्री भगवान सिंह हंस रचित बृहद भरत चरित्र महाकाव्य से कुछ सदप्रसंग आपके आनंद हेतु-
गन्धर्व देश जीत निहारा। प्रभु को दिया शुभ समाचारा।
पुनि बात भरत अंगीकार। कारूपथ पर किन्ह अधिकारा।
अंगदीय चंद्रकांत बसाई। अंगद चंद्रकेतु नृप भाई।
तंहि करहिं भरत धर्म प्रचारा। नेक नीयति मनुज संसारा।
सहज सत्य शिष्टहि सद्भावा .यहीं मिले काशी औ,कावा।
कहि हंस कवि सत्य दिनमाना।सत कर्म ही जगतहि प्रधाना।
श्री भरत का कर्म ही सेतू। भौतिक रूपहिं धर्म निकेतू।
नाथहिं आपका ही प्रतापा।अंतर्मन से मैं ने जापा।
भव सागर से तारक नैया। प्रभु! मेरे आप ही खिबैया।
प्रस्तुति -योगेश
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