हास्य-व्यंग्य-
भाई-भाईचारा और भाई-भतीजावाद
पंडित सुरेश नीरव
ये जो भाई है यह बड़ा ही विचित्र
किंतु सत्य किस्म का जीव होता है। मानव समाज में इसकी अनेक प्रजातियां पई जाती
हैं। मसलन- सगा भाई,सौतेला भाई,जुडवां भाई,छोटा भाई, मोटा भाई, गुरुभाई, धरम का
भाई,दिहाड़ी भाई,तिहाड़ी भाई,घुन्नाभाई,मुन्नाभाई और चोरी-चोरी इक चोरी की डोरी से
बंधे मौसेरे भाई। यानीकि यत्र-तत्र-सर्वत्र भाई-ही-भाई। एक भाई के लिए दूसरा भाई
या तो चारा होता है या बेचारा होता है। फिर भी उनमें अटूट भाईचारा होता है। इतना
अटूट की दोनों भाइयों को जब वे गुत्थ-गुत्था होते हैं तो अलग-अलग करने के लिए समाज
को थोक में सामूहिक श्रम करना पड़ता है। भाई होने के बड़े फायदे हैं। एक तो
दुश्मनी करने के लिए नगरी-नगरी,द्वारे-द्वारे भटकना नहीं पड़ता। दुश्मनी का
कच्चामाल घर में ही आराम से बरामद हो जाता है। और दूसरा यह कि जब दो भाई आपस में
लड़ते हैं तो उस पराक्रमी परिवार की भी समाज में नाक ऊंची हो जाती है। हमारी
संस्कृति को समाज में भाइयों ने जो इज्जत दिलाई है उसे पढ़-सुनकर तो दुनिया के हर
शरीफ आदमी का भारत में भाई बन के पैदा होने को जी ललचा जाता है। अंडरवर्ड में आज
जितने भाई पनप रहे हैं यह सब एक अदद भाईपन का ही कमाल है। ये भाई जब मूड में आते
हैं तो सुपारी उठाते हैं। और जब गूढ़ चिंतन करते हैं तो सुपारी खाते हैं। जब दो
भाइयों में भीषण प्रेम होता है तभी एक भाई रावण और दूसरा विभीषण होता है। एक के
पास सोने की लंका दूसरे के पास धरम का डंका। और दोनों ने मिलकर खूब किया
ईना-मीना-डिंका। बाली और सुग्रीव दो भाइयों के अटूट प्रेम को देखकर तो एकबार राम को भी लक्ष्मण
पर शक हो गया था कि ये मेरा भाई है भी या नहीं? विभीषण और
सुग्रीव-जैसे वफादार भाइयों के भावुक योगदान के बिना क्या रामायण रची जा सकती थी? ऐसी लोकमान्यता है कि एक ही भाई काफी होता है बरबाद गुलिश्तां करने को।
सौभाग्यशाली पांडवों को तो ईश्वर कृपा से नकद पूरे सौ भाई मिले थे। इसीलिए पांचों
पांडवों की पांचों उंगलियां हमेशा घी में और सिर कढ़ाई में रहा। जो काम कौरवों ने
किया उसका तो जबाब नहीं। एक अकेले दुर्योधन-जैसे भाई का भारत को ऋणी रहना चाहिए
जिसकी बदौलत भारत महाभारत हो गया। और जिसकी रचनात्मक गतिधियों से प्रेरणा लेकर
कृष्ण का भी गीता का उपदेश देने का मूड बन गया। रामायण और महाभारत-जैसे दो-दो
ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना का कारण हमारे ये महाभाई ही तो थे। भाईचारे की दुर्लभ
प्रेरणा जिनसे हम आजतक किश्तों में ले रहे हैं।,
1 comment:
भाई तो वज़नदारी की नाव खेते मज़बूत हाथों का दूसरा नाम है! व्यंग्य समाज में व्याप्त बुराई को इतने सरल और अपनापन लिए अलंकार युक्त शब्दों के माध्यम से हमारे मन में शीतल जलधारा प्रवाहित करता प्रतीत होता है ! इस मर्म स्पर्शी लेखनी को सादर नमन !
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