बाएं से आदिल रशीद,डाक्टर अशोक मधुप,राकेश पांडे,(मध्य में) पंडित सुरेश नीरव,अशोक रिछारिया और शिवकुमार बिलग्रामी। |
127th Jayanti-Rashtrakavi Maithilisharan Gupta (03.08.2013)
2 अगस्त · · Taken at Kaushambi
राष्ट्रकवि
मैथिलीशरण गुप्त की 127वीं जयंती के उपलक्ष्य में दिनाँक 03 जुलाई, 2013
(दिन शनिवार) को सायं 7.00 बजे से 'प्रवासी संसार' त्रैमासिक पत्रिका के
तत्वावधान में राजपथ रेजीडेंसी, कौशाम्बी, गाज़ियाबाद में एक 'सरस
काव्यगोष्ठी' सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता देश के प्रतिष्ठित कवि एवं
व्यंग्यकार पंo सुरेश नीरव ने की! पत्रिका के संपादक श्री राकेश पाण्डेय ने
'गर्मी' शीर्षक से अपनी चुटीली व्यंग्य कविता - "गाँव में था/ तो पेड़ की
छाँव से/ मिट जाती थी गर्मी,/ पढ़ने कस्बे में आया/ तो पंखे से/ मिट जाती थी
गर्मी,/ कमाने शहर आया/ तो कूलर से/ मिट जाती थी गर्मी,/ आज दिल्ली में/ ए
सी से भी नहीं मिटती है मेरी गर्मी,/ ज्यो ज्यो मेरा विकास हुआ/ मै और
गर्म होता चला गया।" से सभी का ध्यान पर्यावरण की ओर खींचा। देश के
प्रतिष्ठित गीतकार डॉo अशोक मधुप ने अपनी ग़ज़ल - "रोते बच्चों से जो पूछा तो
हुआ ये मालूम, ले गया छीन के मुँह से भी निवाले कोई" सुनाकर श्रोताओं को
मंत्रमुग्ध कर दिया। युवाकवि शिव कुमार बिलग्रामी ने अपनी ग़ज़ल - "मुराद
नामुराद की जो पूरी हो तो किस तरह, ये वो मज़ार है जो ख़ुद फ़क़ीर ही को खा
गयी" सुनाकर भाव-विभोर कर दिया। अध्यक्षता कर रहे देश के प्रतिष्ठित
व्यंग्यकार पंo सुरेश नीरव ने अपनी व्यंग्यपूर्ण ग़ज़ल - "कूड़े में बीनते हैं
सपने वो ज़िन्दगी के, भाषण की टाफियों से बचपन बहल रहा है" सुनाकर देश की
वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर करारा कटाक्ष किया। गोष्ठी का संचालन कर रहे
युवा-शायर आदिल रशीद ने राष्ट्रीय चेतना का गीत - "बेड़ियाँ गुलामी की क्या
यूँ ही काट पाये थे, अनगिनत ही शीश मातृभूमि पर चढ़ाये थे" सुनाकर समां बाँध
दिया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री अशोक रिछारिया उपस्थित
रहे और गोष्ठी का भरपूर आनंद लिया।
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