हमने खायी न कसम, तुमसे न मिलने की.
वक्त ही बतायेगा, तारिख मिलने की.
पतंगा तैयार है अपने आशियाने में.
इंतजारी है सिर्फ चिराग जलने की .
ये आँसू हैं अव्यक्त, ग़म या नेह के .
टहलते करते वो इनायत मिलने की
.
कोई दीवार है न बीच में ए -खुदा .
फिर क्युं रोक-ए-वक्त तुमसे मिलने की.
नादानी या दीदार क्युँ , खुले आसमां.
महरवां -ए -महफूज़, ज़रा बरसने की.
क़दरदान! क़द्र होती है क़दरदान से.
सोना ना खाता कसम यूँ चमकने की.
नज़रे-ए-आलम ढ़ूँढ़ती इस जहाँ में.
वो बैठा आस-ए-तमन्ना मिलने की
भगवान सिंह हंस
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