Search This Blog

Sunday, July 19, 2009

जुदाई होके मिलन हर अदा हमारी है

जुदाई होके मिलन हर अदा हमारी है
तुम्हारा शहर है लेकिन फ़िज़ा हमारी है।

शिकायतें भी करें हम तो किस ज़बां से करें
ख़ुदा बनाया हमने, ये ख़ता हमारी है।

हमारे जिस्म की उरियानत पे मत हंसना
कि तुम जो ओढे हुए हो, वो रिदा हमारी है।

हमारे सामने ज़ेबा नहीं गुरूर तुम्हें
जहाँ पे बैठे हो तुम, वो जगह हमारी है।
मंज़र भोपाली
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल

No comments: