जुदाई होके मिलन हर अदा हमारी है
तुम्हारा शहर है लेकिन फ़िज़ा हमारी है।
शिकायतें भी करें हम तो किस ज़बां से करें
ख़ुदा बनाया हमने, ये ख़ता हमारी है।
हमारे जिस्म की उरियानत पे मत हंसना
कि तुम जो ओढे हुए हो, वो रिदा हमारी है।
हमारे सामने ज़ेबा नहीं गुरूर तुम्हें
जहाँ पे बैठे हो तुम, वो जगह हमारी है।
मंज़र भोपाली
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
No comments:
Post a Comment