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Monday, July 20, 2009

टीका-टिप्पणी

अरविंद पथिक जी की टिप्पणी पर टिप्पणी
टीका-टिप्पणी साहित्य की एक सशक्त विधा है, जिसमें कुछ ही रचनाकार पारंगत होते हैं। अरविंद पथिक उनमें से एक हैं। कल के कार्यक्रम पर उन्होंने जो टिप्पणी की है, उसमें डीका तो उनेहोंने मुझे लगा दिया और टिप्पणी बाकी लोगों के झोले में डाल दी। चूंकि उन्होंने बात शुरू करने से पहवे मेरी बारे में इतनी प्रशंसा करदी कि मुझे उनकी टिप्पणी पर टिप्पणी करने की जरूरत पड़ गई। हकीकत यह है मेरे दोस्त कि जब आदमी भीतर से खोखला होता है तो वह आवाज ज्यादा करता है। थोथा चना बाजे घना। यही कहावत कल चरितार्थ हुई। मुझे तो डॉ. श्याम सिंह शशि और रत्नाकरजी भी कुछ इसी नस्ल के लगे। यद भावम तद भवति। जैसी मंशा थी वैसा ही हुआ, ऐसा ही होना था। खैर आपकी बेबाक टिप्पणी को प्रणाम।यह सब जिंदगी के मेले के झमेले हैं। हमने अपना फर्ज पूरा किया बाकी ने अपना किरदार निभाया। जय लोक मंगल...
पं. सुरेश नीरव

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