आरज़ू है वफ़ा करे कोई
जीना चाहे तो क्या करे कोई।
ग़र मर्ज़ हो दवा करे कोई
मरने वाले का क्या करे कोई।
कोसते हैं जले हुए क्या क्या
अपने हक़ में दुआ करे कोई।
उनसे सब अपनी अपनी कहते हैं
मेरा मतलब अदा करे कोई।
तुम सरापा हो सूरते- तस्वीर
तुम से फिर बात क्या करे कोई।
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत का क्या करे कोई।
दाग़ देहलवी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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