मुझे तो गंगा के किनारे रहने के सारे दंड भोगने पड़ रहे हैं। गजरौला के रास्ते ब्रजघाट और गढ़गंगा से होने के कारण कभी भी कोई धार्मिक पर्व पड़ा नहीं कि पुल पर घंटों जाम लग जाता है। चार-पांच घंटे का जाम तो साधारण-सी बात है। सावन का तो पूरा महीना ही नर्क की यातना में बीतता है। मामला धार्मिक है इसलिए इसकी आलोचना भी नहीं की जा सकती और करें भी तो फायदा क्या है? बहरहाल पं. सुरेश नीरव ने अपने मंच से इसके खिलाफ जो रायशुमारी का आपरेशन चलाया है वह काबिले तारीफ है और मैं उसकी प्रशंसा करती हूं। और मेरी सुर उनके सुर के ही साथ है।
मधु चतुर्वेदी
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