नीरवजी-मकबूलजी जिंदाबाद
मैं लोकमंगल पर रोज़ अपने दो साथियों- पं. सुरेश नीरव और मृगेन्द्र मकबूल को देखता हूं तो शंकर-जयकिशन और लक्षमी-कांत प्यारे लाल.,कल्याणजी-आनंदजी. सलीम-जावेद की जोड़ी याद आ जाती है। मुकाबला पूरा है। दोनों का जलवा एक-दूसरे के बिना अधूरा है। नियमित लिखने की मिसाल इन दोनों की ही दी जा सकती है। आज हमेशा की तरह नीरवजी ने बढ़िया गजल कही है। और मकबूलजी का भी जवाब नहीं। इन दिनों भाई राजमणि और विपिनजी नहीं दिख रहे। और अरविंद पथिक किस पथ पर चल रहे हैं? जहां भी चले मगर लोकमंगल में तो मिलें।खुदाहाफिज़
चांडाल
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