अखिल भातीय माथुर चतुर्वेदी महासभा, मुंबई के तत्वावधान में आगामी १२ जुलाई को इस्कोन मन्दिर के ऑडिटोरियम में एक कवि-सम्मलेन का आयोजन किया गया है, जिसमे भाग लेने के लिए प० सुरेश नीरव, मोहतरमा मधु चतुर्वेदी और नाचीज़ कल सुबह तशरीफ़ लेजा रहे हैं। लिहाज़ा ब्लॉग से तीन दिन की छुट्टी रहेगी। अब ब्लॉग पर लौटने के बाद मुलाक़ात होगी।
पंडित जी आपकी हास्य-ग़ज़ल बहुत बढिया है। अगर हास्य-ग़ज़ल सुनाने का मूड हो तो इसे मुंबई में ज़रूर सुनाइएगा। आज के लिए मंज़र भोपाली की एक ग़ज़ल पेश है।
सदा देती है खुशबू, चाँद तारे बोल पड़ते हैं
नज़र जैसी नज़र हो तो नज़ारे बोल पड़ते हैं।
तुम्हारी ही निगाहों ने कहा है हम से ये अक्सर
तुम्हारे जिस्म पर तो रंग सारे बोल पड़ते हैं।
महक जाते हैं गुल जैसे सबा के चूम लेने से
अगर लहरें मुखातिब हों किनारे बोल पड़ते हैं।
ज़बां से बात करने में जहाँ रुसवाई होती है
वहाँ ख़ामोश आंखों के इशारे बोल पड़ते हैं।
छुपाना चाहते हैं उनसे दिल का हाल हम लेकिन
हमारे आंसुओं में ग़म हमारे बोल पड़ते हैं।
तेरी पाबंदियों से रुक नही सकती ये फरियादें
अगर हम चुप रहें तो ज़ख्म सारे बोल पड़ते हैं।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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