कुछ दोहे जो मैंने अभी-अभी कहे हैं भाई पं. सुरेश नीरव को सादर भेंट हैं-
िपया िमलन की आस में हुए प्रफुिल्लीत गात।
गरमी में ज्यों फूलती सरिसज के हों पात।।
छप्पर टूटी देहरी, कैसी पड़ी िवरान।
सावन में कोई गा रहा, अशोक मनोरम
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