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Monday, July 20, 2009

पाँच लगते थे रूपए और पास थी पाई नहीं

पाँच लगते थे रूपए और पास थी पाई नहीं
इस लिए तस्वीरे- जानां हमने खिंचवाई नहीं।

देख कर वो जान लेगा अपनी सारी असलियत
इस लिए पोथी जनम की हमने दिखलाई नहीं।

मेरे फोटो से लिपट कर सो न जाए वो कहीं
इस लिए तस्वीर अपनी हमने भिजवाई नहीं।

जानता था कि उसने मार ली पॉकिट मेरी
चुप रहा, गो हो न जाए, उसकी रुसवाई कहीं।

कल की कह के ले गए थे, तुम जो पिछले ही बरस
अब तलक क्यों वो रकम तुम ने पहुंचाई नहीं।
मृगेन्द्र मकबूल

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