पाँच लगते थे रूपए और पास थी पाई नहीं
इस लिए तस्वीरे- जानां हमने खिंचवाई नहीं।
देख कर वो जान लेगा अपनी सारी असलियत
इस लिए पोथी जनम की हमने दिखलाई नहीं।
मेरे फोटो से लिपट कर सो न जाए वो कहीं
इस लिए तस्वीर अपनी हमने भिजवाई नहीं।
जानता था कि उसने मार ली पॉकिट मेरी
चुप रहा, गो हो न जाए, उसकी रुसवाई कहीं।
कल की कह के ले गए थे, तुम जो पिछले ही बरस
अब तलक क्यों वो रकम तुम ने पहुंचाई नहीं।
मृगेन्द्र मकबूल
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