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Wednesday, July 8, 2009

सुरेश उपाध्याय के दोहे

मेरे दोहे उपनिषद मेरे दोहे वेद
नामवरों को हो रहा सुनकर भारी खेद

ओशो ने खुद को कहा पढ़ालिखा भगवान
मैं हो गया प्रबुद्ध तो हर कोई हैरान

तूने खुद को ही किया सदा नज़रंदाज़
अब चलने का वक्त है अब तो आजा बाज़

पछताएगा बाद में ले ले मेरा नाम
अभी निरंतर मैं करूँ झुक झुक तुझे सलाम

तुमने अनदेखा किया मुझे बंधु हर रोज
मैंने केवल इसलिए कहा स्वयं को खोज

अपनी करतूतें अगर देने लगें सुकून
तो तुम समझो कर दिया तुमने खुद का खून

मन टुकड़ों में बँटा जब तब तक मैं था खिन्न
अब मन मिलकर एक है अब मैं हुआ अभिन्न

मैं या मन दो चीज़ हैं इन्हें एक मत मान
जब तू खुद चैतन्य है तब मन को मृत जान

जिसने जाना स्वयं को उसका गया गुमान
वह खोजे भगवान क्यों वह खुद है भगवान

जो खुद अपने में मगन वो हो गया फकीर
उसकी इस संसार में कोई नहीं लकीर

प्रस्तुति –राजमणि

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