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Thursday, July 23, 2009

सोच का ओवरकोट


पं.. सुरेश नीरवजी आपने पश्यंती की कवयित्री की कविता पोस्ट की है तो आज में भी पश्यंती की ही एक जरूरी कवयित्री मधु मिश्रा की कविता पोस्ट कर रहा हूं,उम्मीद है ब्लॉगर बंधुओं को पसंद आएगी।
आज फिर
सोच का ओवरकोट
तुम्हारी स्मॉतियों की शबनमी बर्फ से भीग गया है
और
पंख लगी कल्पनाएं
एक बार फिर
बर्फ-बर्फ हो गईं हैं
और मैं इन बर्फ की गेंदों को उछालती,उलीचती
अनायास फिर पहुंच गई हूं
उस
क्वारी पगडंडी पर
जहां
कोहरे के रेशमी धुंध में उपलक निहारती
मीठे सपनों की रजनी गंधा
अपनीमहकती खुशबू से से गा रही है
तन्हाई के सितार पर
एक अनछुआ विरह
और फिर
मंत्रमुग्ध-सी में
कांपते होंठों के साथ
गा रही हूं
उस गीत को रजनी गंधा के साथ
और तभी
समय का हतप्भ डाकिया
फिर आकर थमा गया
मेरे हाथों में
तुम्हारे गुनगुने संस्मरणों का
एक खामोश लिफाफा...
प्रस्तुतिः भगवान सिंह हंस।

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