हालांकि मौसम बेईमान हो गया है, बादल दिखा दिखा के तसल्ली भी दे रहा है और हमारे सब्र का इम्तिहान भी ले रहा है। मौसम की इस बेरुखी के बावज़ूद लोकमंगल पर बहार आई हुई है। आज करीब करीब सारे सितारे नज़र आ रहे हैं। भाई रजनीकांत राजू की रचना सुंदर है। प० सुरेश नीरव ने हनुमान जी जैसे अछूते विषय पर ग़ज़ल कह के ग़ज़ल को एक नया आयाम दिया है, इस के लिए उन्हें साधुवाद। आज के लिए एक ग़ज़ल पेश है।
ज़मीं पर आफ़ताब है
हाथ में जब शराब है।
ये सच हमेशा बोलती है
तभी तो ख़राब है।
हमसे मिलाए आँख
किस में इतनी ताब है।
समंदर से खेलती हुई
ये लहरों की नाव है।
लिक्खी गई जो खून से
ये वो किताब है।
अपना तो प्यार दोस्तो
बस बेहिसाब है।
मृगेन्द्र मकबूल
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