राजमणिजी आपने कैफी आज़मी की रचना बहुत बढ़िया छांटी है और मकबूलजी आपने डॉ. बशीर बद्र की बेहतरीन गजल पेश की है, आप दोनों का तहेदिल से शुक्रिया। कल हमें हमारे पुराने दोस्त पी.एन..सिंह मिल गए और कल की शाम उनके साथ रंगीन हुई। बहुत दिनों बाद उनके साथ बैठना हुआ,अशोक मनोरम और भगवान सिंह हंस भी साथ थे। लीजिए,आज फिर एक कविता मधु मिश्रा की प्रस्तुत है- (पश्यंती से)
नेपथ्य पुरुष के लिए
आज भी
स्मृतियों के नेपथ्य से
झांक रहा है तुम्हारा चेहरा
वही चेहरा
जिसे मैंने
जब-जब स्पर्श करना चाहा है
वह मुझे चिढ़ाता
अनंत में विलीन हो जाता है
दरअसल
वह चेहरा मेरी पहचान था
जिसे खोने के बाद
मैं महज़ एक नकाबपोश होकर रह गई हूं
जो अस्मिता के अलावा
वह सब कुछ रखता है
जो एक आदमी के लिए
जरूरी होता है
लेकिन ...
बिना पहचान के
एक प्रेत जीवन
जीने से क्या फायदा
लौट आओ न नेपथ्य पुरुष
तुम्ही तो मेरे बेजान जीवन की आग हो
मैं तुमसे मनुहार करती हूं
क्योंकि--
तुम तो मेरे प्रथम अनुराग हो...
प्रस्तुतिः पं. सुरेश नीरव
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