भाई अशोक मनोरमजी आपने ग़ज़ल की तरह दी है मौसम में बरसात के सब अच्छा लगता है और चाहा है कि व्लागर बंधु इस पर ग़ज़ल कहें तो पेश करता हूं कुछ शेर
मौसम में बरसात के सब अच्छा लगता है
हरजाई का झूठा वादा भी सच्चा लगता है
क्यों आंसू ढुलकाते हो तुम उसके दिए फरैब पर
अपनों से ही यार हमेशा गच्चा लगता है
वो कैसे साथ निभा पाता भैया तेरा जो
दिखने में ही चाल-चलन में कच्चा लगता है
झूठ -फरैब भूल सयानी दुनिया के
बात उसूलों की करता वो बच्चा लगता है
रिश्वत के मंहगे लिबास से बेहतर तो
अच्छा हमको फटा-पुराना कच्छा लगता है।
पं. सुरेश नीरव
No comments:
Post a Comment