पं. सुरेश नीरवजी आपने अशोक मनोरम की दी तरह पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कह दी है,बधाई। आप आशु प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। मकबूलजी और राजमणिजी की रचनाएं भी ब्लाग की रौनक बढ़ाने में कामयाब रही हैं। मधुजी ने बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। भाई प्रदीप शुक्लाजी की मेहनत भी काबिले तारीफ है। सब को जय लोक मंगल।
भगवान सिंह हंस
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