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Thursday, August 27, 2009

आए हम शहर

सुरेश जी का गीत के बाद रमेश पंत का गीत ब्लागर बन्धुओं के लिए
आए हम शहर
गाँव नेहों का भूल गए!

चेहरों पर एक नहीं
अनगिन हैं पर्तें
कितनी ही जीने की
ऐसी हैं शर्तें

जामुन की छाँव
नीम-बरगद को भूल गए!

कैसे तो दाँव यहाँ
रोज़ लोग चलते
औरों की कौन कहे
अपनों को छलते

कागा का काँव
यहाँ आकर हम भूल गए!

कुछ ऐसी भाग-दौड़
भीतर तक टूटे
सपने जो लाए थे
संग-साथ छूटे

आए थे पाने कुछ,
खुद को ही भूल गए!

प्रस्तुति –राजमणि

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