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Friday, August 28, 2009

अच्छा लगता है

इस मौसम में गजलें ितखना अच्छा लगता है
भीग गए गर बािरस में तो कच्छा लगता है।

आदरणीय नीरव जी आपके िमजिहया के हम शायरी के हम कायल हैं कृपया इसे पूरा करें
अशोक मनोरम


हम आपके शहर में बरसात लेकर आए
सूखे के इस मौसम में है भात लेकर आए।
चूने लगा था छप्पर, घर में न िनवाला था
भूखे नहीं सो जाए िचकने पात लेकर आए।।
नरेगा नाम सुनते ही िखल गए हैं चेहरे
िसयासत की बात भूले, ज़ज़्वात लेकर आए।।
कैसी चली है आंधी, बगुले भी परेशां हैं
कहने को तो सगे हैं, बदजात लेकर आए।।
क्यों देते हो नसीहत हर शख्स को ॅमनोरम#
तेरे रकीब वे हैं िजन्हें साथ लेकर आए।।

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